17 Jan 2018

निश्तेज... Nishtej ......

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मैं सिमट सा गया हूँ
कुछ सीमित सा होने लगा हूँ मैं
उदासियों ने इस कदर घेरा
अवसादों का ऐसा लगा डेरा
संतापों के जंजीरों में
मैं संकुचित सा हो गया हूँ
कुछ सिकुड़ने सा होने लगा हूँ मैं।
कहीं कसमकश उद्वेलित है तो
कहीं उलझन आच्छादित है
के गलियारों में
मैं गुम सा हो गया हूँ
कुछ खोने सा लगा हूँ मैं।
अंतर्द्वंद्व चलता रहा
अंतर्मन सिसकता रहा
आहतों के थपेड़े खाके
मैं बिखर सा गया हूँ
कुछ टुटने सा लगा हूँ मैं।
शिथिलता सी छाने लगी है
अचलता सी आने लगी है
विराम लगती जिंदगी में
मैं निश्तेज सा हो गया हूँ
कुछ निश्चल सा होने लगा हूँ मैं।।।।।

                  ----- अजीत।
  *****XIV-I-MMXVIII*****