मौत पनप रही दर-बदर
गाँव-गाँव शहर-शहर
जिंदगी स्तब्ध है
जिंदगानी निःशब्द है
मौत पसर रही इधर-उधर
गाँव-गाँव शहर-शहर।
हर ओर सन्नाटा छाया है
चहुँओर दहशतों का साया है
फिज़ाओं में घुल रहा जहर
मौत की उठ रही लहर
गाँव-गाँव शहर-शहर।
अपने छूट रहे पल-पल
सपने टूट रहे हरपल
घट रही जिंदगी पहर-दो-पहर
मौत ढ़ा रही है कहर
गाँव-गाँव शहर-शहर।
आँखों में बसा है सूनापन
सिसकियां भी अब है मौन
मायूसी छायी है इस कदर
मौत निकल पड़ा डगर-डगर
गाँव-गाँव शहर-शहर।
लाशों के ढ़ेर में
जिंदगी सुबकती रहती
जो आज जलती दिखती
कल को आती बुझने की खबर
मौत का चल पड़ा है सफर
गाँव-गाँव शहर-शहर।
*******XXIX-VII-MMXX*******
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