30 Jul 2020

पसरता मौत

~~~~~~~~~~~~~~~~
    मौत पनप रही दर-बदर
    गाँव-गाँव शहर-शहर
    जिंदगी स्तब्ध है
    जिंदगानी निःशब्द है
    मौत पसर रही इधर-उधर
    गाँव-गाँव शहर-शहर।
       हर ओर सन्नाटा छाया है
       चहुँओर दहशतों का साया है
       फिज़ाओं में घुल रहा जहर
       मौत की उठ रही लहर
       गाँव-गाँव शहर-शहर।
    अपने छूट रहे पल-पल
    सपने टूट रहे हरपल
    घट रही जिंदगी पहर-दो-पहर
    मौत ढ़ा रही है कहर
    गाँव-गाँव शहर-शहर।
       आँखों में बसा है सूनापन
       सिसकियां भी अब है मौन
      मायूसी छायी है इस कदर
       मौत निकल पड़ा डगर-डगर
      गाँव-गाँव शहर-शहर।
   लाशों के ढ़ेर में
   जिंदगी सुबकती रहती
   जो आज जलती दिखती
   कल को आती बुझने की खबर
   मौत का चल पड़ा है सफर
   गाँव-गाँव शहर-शहर।
  *******XXIX-VII-MMXX*******
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~