13 Jun 2015

नन्हा अहसास


चाहूं तो भी सोच न पाऊँ  
सोचूं तो शायद पागल हो जाऊँ 
कुछ ही सही 
उसके यादों को संजोया हूँ  तो 
थोड़ा ही सही 
उसके वात्सल्य को जाया हूँ 
चाहूं तो भी पास न हो पाऊँ 
सोचूं तो शायद पागल हो जाऊँ। 
           साथ के उसके 
           पल पल को पिरोया हूँ 
           समीपता को उसके 
           हृदय में सजाया हूँ 
           नन्हें अंगुलियों के स्पर्श को 
           कभी भूल न पाऊँ 
           चाहूं तो भी अंक न लगा पाऊँ 
           सोचूं तो शायद पागल हो जाऊँ। 
अबोधपन में उसके 
खो सा गया हूँ मैं 
चंचलमन में उसके
सो सा गया हूँ मैं 
हर मुस्कान पर उसके 
मैं वारी वारी जाऊँ 
चाहूं तो भी सोच न पाऊँ 
सोचूं तो शायद पागल हो जाऊँ। 
            -:-:-:-:-VI:VII:MMXI-:-:-:-:-
+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+::+

1 comment: