नौ से चार
नौ की लगी हड़बड़ी है
चार का रहता बेसब्री से इंतजार
भागमभाग और जद्दोजहद में
कैसे होगा बेड़ा पार?
नादानियां ठिठक सी गई है
लापरवाहियों को मिला कारागार
नौ-चार के बीच लटके अधर में
कैसे होगा बेड़ा पार?
छ्द्म आजादी छिन सी गई है
वक़्त काटना हुआ दुश्वार
विकल्प ढूंढ़ने के कशमकश में
कैसे होगा बेड़ा पार?
कर्तव्यपरायणता कुंद हो गई है
नियति पर गहराया ग़ुबार
कुंठित सोच की इस मनोवृति में
कैसे होगा बेड़ा पार?
अपने कर्म की पहचान करो
तज दो अपना मनोविकार
शिक्षण की संतुष्टि से
हो जाएगा बेड़ा पार।
--अजीत कुमार
X.VII.MMXXII